15 अगस्त 2025 को दुनियाँ की नजरें Alaska पर होंगी, जहाँ अमेरिका के राष्ट्रपति Donald Trump और रूस के राष्ट्रपति Vladimir Putin आमने-सामने बैठेंगे। यह मुलाकात सिर्फ एक कूटनीतिक बातचीत नहीं, बल्कि एक संभावित ऐतिहासिक क्षण है, जो Ukraine War के भविष्य को बदल सकती है। 2022 से जारी इस युद्ध ने लाखों लोगों की जान ली, यूरोप को अस्थिर किया और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाला है। सवाल यह है कि क्या यह बैठक युद्ध समाप्त करने की दिशा में पहला ठोस कदम होगी, या फिर यह दुनियाँ को एक नए भू-राजनीतिक संकट में धकेल देगी?
अमेरिका–रुस सम्बन्ध और Ukraine War:
अमेरिका और रूस के रिश्ते पिछले एक दशक से लगातार बिगड़ते गए हैं। 2014 में रूस द्वारा क्रीमिया पर कब्जा करने के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा। 2022 में रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने का सैन्य आक्रमण कर दिया, जिसके बाद अमेरिका और उसके सहयोगियों ने रूस पर सख्त आर्थिक प्रतिबंध लगाए।
नाटो (NATO) देशों ने यूक्रेन को सैन्य सहायता दी, जबकि रूस ने चीन और अन्य सहयोगियों के साथ अपने संबंध मजबूत किए। Alaska को इस बैठक के लिए चुना जाना भी अपने आप में प्रतीकात्मक है। शीत युद्ध के दौर में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच आर्कटिक क्षेत्र में तनाव का लम्बा इतिहास रहा है। अब उसी इलाके में दोनों देश एक नए मोड़ पर खड़े हैं।
ट्रंप और पुतिन की पुरानी नजदीकियों और विवादित बयानों को देखते हुए, यह बैठक एक बार फिर से वैश्विक चर्चा का केंद्र बन गई है।
Alaska की बैठक के मुख्य बिंदु:
Trump ने हाल ही में एक बयान देकर हलचल मचा दी थी कि यूक्रेन और रूस के बीच “कुछ क्षेत्रों की अदला-बदली” हो सकती है। इस बयान का सीधा इशारा डोनबास, लुहान्स्क, दोनेत्स्क, जापोरिज़्झिया, खेरसॉन और क्रीमिया जैसे इलाकों की तरफ है।
रूस की मांगें: रूस चाहता है कि इन क्षेत्रों पर उसका आधिकारिक नियंत्रण मान्यता प्राप्त करे और पश्चिमी देशों के लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध हटाए जाएँ।
यूक्रेन का रुख: राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की बार-बार कह चुके हैं कि रूस को कोई भी क्षेत्र नहीं दिया जाएगा और युद्ध का अंत तभी होगा जब रूसी सेना पूरी तरह से पीछे हटे।
नाटो और यूरोपियन यूनियन का दबाव: अगर यूक्रेन को इस प्रक्रिया में शामिल नहीं किया गया, तो किसी भी समझौते को मान्यता नहीं मिलेगी।
अमेरिका की आंतरिक राजनीति: ट्रंप का यह कदम अमेरिकी चुनावों से पहले उनके ‘डीलमेकर’ इमेज को मजबूत कर सकता है, लेकिन यह बाइडेन और डेमोक्रेट्स के लिए एक नई चुनौती भी बनेगा।
भारतीय दृष्टिकोण:
भारत ने Ukraine War में अब तक एक संतुलित रुख अपनाया है। रूस से सस्ती कच्चे तेल की खरीद और अमेरिका के साथ बढ़ते रक्षा और तकनीकी सहयोग, दोनों को बनाए रखना भारत के लिए जरूरी है।
अगर Trump-Putin Alaska Summit से अमेरिका–रूस संबंधों में सुधार होता है, तो भारत के लिए दोनों महाशक्तियों के साथ सहयोग बढ़ाना आसान हो जाएगा।
साथ ही, भारत वैश्विक मंच पर एक ‘मध्यस्थ’ की भूमिका निभा सकता है, जैसा कि उसने G20 में यूक्रेन पर सहमति बनाने के लिए किया था।
Trump-Putin Alaska Summit की चुनौतियाँ:
इस बैठक को सफल होने से रोकने के लिए कई तरह के ‘स्पॉइलर्स’ हो सकते हैंー
- यूक्रेन और उसके सहयोगी देशों द्वारा बैठक से पहले नए सैन्य ऑपरेशन शुरू करना।
- नाटो के भीतर मतभेद, खासकर अगर अमेरिका बिना बाकी सहयोगियों को विश्वास में लिए कोई डील करता है।
- भविष्य में यह मिसाल बन सकती है कि किसी भी देश को बलपूर्वक दुसरे देश का क्षेत्र कब्जा करने के बाद वैधता मिल सकती है, जिससे अन्य क्षेत्रों में भी ऐसे संघर्ष बढ़ सकते हैं।
आगे किन बातों पर नजर रखनी चाहिए?
15 अगस्त की बैठक के नतीजों का असर सिर्फ उसी दिन तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आने वाले हफ्तों और महीनों में कई मोर्चों पर इसकी गूँज सुनाई देगी। इन तीन पहलुओं पर सबसे ज्यादा नजर रखनी होगी—
- Ukraine की आधिकारिक प्रतिक्रिया और शर्तें:- बैठक के तुरंत बाद यह देखना जरुरी होगा कि यूक्रेन इस डील या प्रस्ताव पर कैसी प्रतिक्रिया देता है। अगर पुतिन और ट्रंप के बीच कोई समझौता होता है, लेकिन उसमें यूक्रेन की सहमति नहीं है, तो यह स्थायी समाधान की बजाय एक अस्थायी विराम साबित हो सकता है। जेलेंस्की सरकार पर घरेलू दबाव भी होगा कि वे किसी भी ‘क्षेत्रीय समझौते’ को स्वीकार न करें।
- नाटो, यूरोपीय संघ और G7 देशों का रुख:- पश्चिमी गठबंधन इस पूरे युद्ध के दौरान एकजुट दिखा है, लेकिन अगर अमेरिका अकेले कोई डील करता है तो नाटो के अंदर मतभेद गहरे हो सकते हैं। यूरोपीय देशों के लिए यूक्रेन युद्ध सिर्फ एक भू-राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि उनकी सुरक्षा और ऊर्जा आपूर्ति से जुड़ा मसला है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि वे किसी नए प्रस्ताव को समर्थन देते हैं या फिर अपना विरोध जताते हैं।
- भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की कूटनीतिक चालें:- भारत, तुर्किये, और ब्राज़ील जैसे देश इस युद्ध में सीधा पक्ष न लेते हुए भी शांति वार्ता में अहम भूमिका निभा सकते हैं। अगर अमेरिका–रूस संबंधों में सुधार होता है, तो भारत को ऊर्जा और रक्षा सौदों में नए अवसर मिल सकते हैं। साथ ही, भारत इस मौके का इस्तेमाल खुद को ‘वैश्विक मध्यस्थ’ के रूप में और मजबूत तरीके से पेश करने में कर सकता है।
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Trump-Putin Alaska Summit एक निर्णायक क्षण हो सकती है—या तो यह शांति की शुरुआत होगी, या फिर एक और लंबे संघर्ष का मंच तैयार करेगी। 15 अगस्त को दुनियाँ को यह देखने को मिलेगा कि क्या दो बड़े नेता अपने-अपने राजनीतिक और रणनीतिक हितों से ऊपर उठकर वैश्विक स्थिरता के लिए कोई ठोस कदम उठा सकते हैं? भारत जैसे देशों के लिए यह एक बड़ा अवसर भी है और एक गंभीर चुनौती भी।
अगर आप भू-राजनीतिक घटनाओं के साथ-साथ देश के भीतर हो रही महत्वपूर्ण घटनाओं पर भी नज़र डालना चाहते हैं, तो हमारी उत्तरकाशी आपदा रिपोर्ट जरुर पढ़ें।